Wednesday, 5 April 2017

गजल

दर्द महफ़िल में छुपाना रह गया
बेहिसी में मुस्कुराना रह गया
आजमा कर आये हैं रिश्ते सभी
सिर्फ ख़ुद को आजमाना रह गया
साथ में था कारवाँ जिसके कभी
हश्र में तन्हा दिवाना रह गया
मालो ज़र हमने कमाया उम्र भर
इसलिए नेकी कमाना रह गया
पीठ दिखलाना कभी सीखा नहीं
मेरे हिस्से सर कटाना रह गया
हम जहाँ भर को जगाने चल पड़े
और ख़ुद को ही जगाना रह गया
कर चुके सब ही नवाजिश,आपका
सिर्फ़ इक तोहमत लगाना रह गया
___रामेन्द्र

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