Monday, 3 April 2017

गजल

ग़ज़ल::=-
जब कमाने में डट गई दुनिया
सच के रस्ते से हट गई दुनिया
दौर यह कैसा आ गया देखो
ज़िंदा लाशों से पट गई दुनिया
देखकर हाल आदमीयत का
मेरे तो दिल की फट गई दुनिया
सिर्फ़ अपना ही फ़ायदा देखो
मंत्र अच्छा ये रट गई दुनिया
दूरियाँ दिल में बढ़ गईं फिर भी
लोग कहते हैं घट गई दुनिया
आदमीयत से तोड़ कर रिश्ता
आज मज़हब में बट गई दुनिया
जब से इंसान में दिमाग़ आया
कितने हिस्सों में कट गई दुनिया
___रामेन्द्र

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