Tuesday, 4 April 2017

शायरी

*जायका अलग है, हमारे लफ़्जो का...
*कोई समझ नहीं पाता... कोई भुला नहीं पाता...*😔


गज़ब की धूप है शहर में
फिर भी पता नहीं,
लोगों के दिल यहाँ
पिघलते क्यों नहीं...!!!


परवाह ही बताती है कि*
*ख़्याल कितना है...*
*वरना कोई तराजू नहीं होता*
*रिश्तो में...!!!!*


 तु कितनी भी खुबसुरत क्यूँ ना हो ए ज़िंदगी..
खुशमिजाज़ दोस्तों के बगैर तु अच्छी नहीं लगती..


 *न हथियार से मिलते हैं न अधिकार से मिलते हैं....!!*

*दिलों पर कब्जे बस अपने व्यवहार से मिलते है....!!*🌹


*वो बुलंदियाँ भी*
*किस काम की जनाब* ,

*इंसान चढ़े और*
*इंसानियत उतर जाये**फितरत किसी की*


*ना आजमाया कर ऐ जिंदगी*।
*हर शख्स अपनी हद में*
*बेहद लाजवाब होता है*..।.

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