Monday, 3 April 2017

बचपन

एक कविता आप सबको समर्पित ..........।।
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मन की स्याही से,
जिंदगी के पन्नों पर,
मन मीत के लिए ,
कुछ कहने को,
मन करता है ।।

आज एक बार फिर से,
जीवन को बचपन सा,
जीने को मन करता है ।।

उम्मीदे बहुत है ,
स्नेही जिंदगी तुमसे
गर तुम मेरा साथ दो ।।

बचपन मेँ की गई
शेतानियो से अब
डर सा लगता है
आज एक बार फिर से
जीवन को बचपन सा
जीने को मन करता है ।।

ये लो पानी फेर दो ,
जिंदगी के उन पन्नों पर,
जो बचपन से अलग लिखी हो।।

जिसमें उदासी की ही,
कोई नज़्म लिखी हो ,
या फिर से कोई ,
अनमनी गज़ल लिखी हो ।।

अरे कभी तो मुझे
खुश नुमायितो से
साक्षात्कार हो लेने दो ।।

आज फिर से मुझे
उन तमाम यादों के
जालों में मकड़ी बन
होले-होले से हल्का
हो लेने दो ।।

आज एक बार फिर से
जीवन को बचपन सा
जीने को मन करता है।।
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