Friday, 27 October 2017

आजकल

*पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है...!*

*आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है...!!*

*अपने घर की कलह से फुरसत मिले तो सुने…!*

*आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है...!!*

*खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..!*

*आज कल परिंदों मे जान कौन रखता है..!!*

*हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..!*

*आज कल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..!!*

*बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां_बाप को..!*

*आज कल घर में पुराना सामान कौन रखता है…!!*

*सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान…!*

*खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है…!!*

*फिजूल बातों पे सभी करते हैं वाह-वाह..!*

*अच्छी बातों के लिये अब जुबान कौन रखता है**

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