दूसरों को देख भागा जा रहा है आदमी
टुकड़ों टुकड़ों में बिखरता जा रहा है आदमी
अंत इच्छाओं का इसकी तो कभी होता नहीं
पास सरिता, फिर भी प्यासा जा रहा है आदमी
ज़िन्दगी के मंच पर किरदार जो भी मिल गया
उसको शिद्दत से निभाता जा रहा है आदमी
फांकता है धूल ही गुणवान खाली बैठकर
अब तुला पर धन की तोला जा रहा है आदमी
रूप ,दौलत की सुरा का पान बस करने लगा
डूब कर इनमें बहकता जा रहा है आदमी
जन्म से ले मौत तक का तय इसे करना सफर
खुद मोड़ मुड़ता जा रहा है आदमी
टुकड़ों टुकड़ों में बिखरता जा रहा है आदमी
अंत इच्छाओं का इसकी तो कभी होता नहीं
पास सरिता, फिर भी प्यासा जा रहा है आदमी
ज़िन्दगी के मंच पर किरदार जो भी मिल गया
उसको शिद्दत से निभाता जा रहा है आदमी
फांकता है धूल ही गुणवान खाली बैठकर
अब तुला पर धन की तोला जा रहा है आदमी
रूप ,दौलत की सुरा का पान बस करने लगा
डूब कर इनमें बहकता जा रहा है आदमी
जन्म से ले मौत तक का तय इसे करना सफर
खुद मोड़ मुड़ता जा रहा है आदमी
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