Thursday, 26 October 2017

आज का आदमी

दूसरों को देख भागा जा रहा है आदमी
टुकड़ों टुकड़ों में बिखरता जा रहा है आदमी

अंत इच्छाओं का इसकी तो कभी होता नहीं
पास सरिता, फिर भी प्यासा जा रहा है आदमी

ज़िन्दगी के मंच पर किरदार जो भी मिल गया
उसको  शिद्दत से निभाता जा रहा है आदमी

फांकता है धूल ही गुणवान खाली बैठकर
अब तुला पर धन की तोला जा रहा है आदमी

रूप ,दौलत की सुरा का पान बस करने लगा
डूब कर इनमें बहकता जा रहा है आदमी

जन्म से ले मौत तक का तय इसे करना सफर
खुद  मोड़ मुड़ता जा रहा है आदमी

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