कभी बिन पिये भी ख़ुमारी लगे
यही ज़िन्दगी है जो प्यारी लगे
चलो यूं करें मिल उठाएं सभी
अकेले तो ये बोझ भारी लगे
नहीं काम आये किसी के अगर
तो ये उम्र यूं ही गुज़ारी, लगे
न जीने में ज़िंदादिली गर दिखे
तो सूरत से ना-ऐतबारी लगे
बुढ़ापे में दर्पण की करतूत है
न सूरत ये हमको हमारी लगे
अगर वक़्त दे चंद लमहात और
बची ज़िन्दगी फिर उधारी लगे
लगाकर सभी कुछ बचा दांव पर
स्वरूप आजकल तो जुआरी लगे
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