Friday, 28 September 2018
कविता
कनाल पड़ी है गैण, अर भात भरण आला है ।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
अबकी फसल होण हूं ऑपरेशन करवाणो है।
अर् बाप बींगा माचा माहीं मरण आला है ।
टाबरां न काढ दिया स्कुल मुं, क फीस कोनी ल्याया।
इब के फसल हूं आंगा भी हिसाब करण आला है ।
नहीं तो पाणी हूं किसान, कठ डरण आला है।
नहीं तो पाणी हूं किसान, कठ डरण आला है।
लार आयड़ी गे गळ गो ओम बेच्यो मां री आंख्या गी दवाई खातर,
बींगा भी तो सुहाग रा धागा घड़ण आला है।
अब थे सुनल्यो बात मेरी, अर मान जाओ माल्कों।
नहीं तो अब क कोई पुर ही, अड़ाण धरण आला हैं ।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
अर बोत है सरकारां कन होण आला,
बीं कन, तु हीं बता कुण खड़ण आला है।
बोळा ऊंचा गा तो सपणा ही कोनी ल्य।
बींगा तो कच्चा ढूंढड़ा ही पड़ण आला है।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
खेत में है धाप ग कादो अर लाद कोनी ज्वार में दांती ।
थार भाई गी
, खेत में रूखाळी गी बारी रात ने आयड़ी है पांती,
ल्याज राखो बादळो, लाग बचेड़ो खेत भी डांगर चरण आळा है।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला है।
नहीं तो पाणी हूं किसान कठ डरण आला ह
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment